अबो हर वार है सोमवार,
सुबह से करते हैं शाम का इंतज़ार,
लड़로पे वो दिन थे ख़ुशगवार,
आता था एक दिन कहते थे उसे रविवार,
साईकल पे पीछे बैठने का आनंद था अपार,
सुबह उठ के हो जाते थे हम तैयार,
मोगली, रंगोली और देखते चित्रहार,
चंद्रकांता, तरंग और कृष्णा लगいे त्योहार,
चंपक और चाचा चौधरी थे मज़ेदार,
मिट्टी की गुल्लक तोड़ने का इंतज़ार,
होमवर्क देख कर आ जाता बुख़ार,
लगいा अब जल्दी बड़े हो जायें यार,
बरसात में कागज़ की नाव बनाना,
सितोलिया और साँप सीढ़ी से मन बहलाना,
दोस्तों संग लुका छुपी खेलना,
कट्टी करना फिर एक हो जाना,
गली में क्रिकेट खेलना,
हो जाने पर नोंक झोंक करना,
रविवार कहो या संडे उसे कहना,
बचपनचला जाए बचपना नहीं खोना।
很棒的诗....巴巴潘ki yaade taza ho gayee
回复删除谢谢你Aparna :)
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