उसे चंचल चेतन में, छोटे से मन के उपवन में,
अनेक सवाल उठते होंगे, अद्भुत खयाल आते होंगे,
ना जाने क्या सोचता होगा, क्या उसो समझता होगा,
विचित्र दुनिया का हर कोण होगा, विचार वृद्धि का वेग होगा,
पेड़ पौधे उपवन आंगन पहेलियों की कड़ियाँ,
सड़कपरदौड़ती गाड़ियां, पशु पक्षी की किलकारियां, अचरज की होंगी झड़ियाँ,
भाषा और शब्दों की श्रृंखला में टटोलता होगा,
वो कभी अपरिचित अनोखी कहानियां,
क्रोध क्लेश का भावावेश,
क्या समझे वो करना द्वेष,
ना हंसी ठिठोली करना आये, उसो ना आये परिहास,
पटिषाद निरीह निराला ना जाने वो त्रास,
किसका धन और कैसी माया,
रिश्तों का बंधन है किसने बतलाया,
ना देव दानव को वो पहचाने, ना कीर्तन भजन जाने
वो बैरागी,
सरलित्त से करता विश्वास, विशुद्ध उसा मन अनुरागी,
पूजा अरज से ना साधे काज वो निस्वार्थ,
प्रतिफल और प्रतिकार है विचार निरर्थ,
सदैव रहता है निश्छल निर्मल नदी सा वह
उत्साहित ,
असीम हो कर छलकती उत्सुकता की गागर,
क्या अपना क्या पराया कैसे रक्त का कौन है जाया,
जिसमे उसने प्रीति देखी मनोवेग ले वो मुस्काया |